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सफर कट जाएंगे, बिछड़ के मर जाएंग
तेरे बारे में लेकिन गजल कह जाएंगे
अंधेरी रात में तुम कभी ठोकर न खाओ
जहां पे तुम रहोगे, वहीं जल जाएंगे
न जुड़ पाया है हमसे ये टूटा आशियां भी
तेरे बिन ये हुनर हम कहां से पाएंगे
चले आए हैं लिखने इश्क की दास्तां हम
किताबों में ही हम-तुम संग रह जाएंगे
आपने अपना नामो-निशां छोड़ा होता
तो मेरे खत का लिफाफा नहीं कोरा होता
ये हकीकत है कि आप सा कोई ना मिला
आप मिलती तो मैं खुद से ना जुदा होता
मुझे पता है मेरे रूह में बस आप ही हैं
काश! आपके रूह में मेरा भी पता होता
बह रही है जमीं पे चांदनी की नदी
तैरते साये का कोई तो किनारा होता
गम से याराना नहीं, गम से आशनाई है
दर्द है सीने में और जिस्म में तन्हाई है
एक सुरीली सी हवा तेरे दर पे ले आई
क्या खबर थी कि ये हिज्र की शहनाई है
अब उदासी ही दिखेगी मेरे चेहरे में
अपनी ये तस्वीर मैंने तुमसे ही बनवाई है
आंख भर लेते हैं जब याद तेरी आती है
तेरे खातिर ही मैंने बांध ये खुलवाई है
चांद सी आंखों से गिरते हैं अश्क से तारे
है घनेरी जुल्फ तले नम रात के नजारे
दर्द आएगा दबे पांव सुबह की तरह
फिर तो सूरज में जलेंगे मेरे अरमां सारे
तुम्हें पाया तो नीरस हो गई ये दुनिया
और दुश्मन सी हो गई घर की दीवारें
तू न आई तो अधूरी है जिंदगी की गजल
जाने कब आएगी तू लेकर हुस्न की बहारें

आह और दर्द बस तेरा तलबगार हुआ
आंख पत्थर हुई, अश्क आबशार हुआ
अमावस में बस जुदाई के सितारे हैं
चांद के बिन फलक भी दागदार हुआ
मेरी पलकों का झपकना बड़ा मुश्किल है
ऐसा तबसे है जबसे तेरा दीदार हुआ
सो रहे हैं इन मकानों के बाशिन्दे सभी
मैं जगा रहके बस्ती का गुनहगार हुआ
पत्थर की तरह दिल को तराशा है बार-बार
एक ताजमहल हमने बनाया है बार-बार
हम तो वफा की राह पे तन्हा ही रह गए
पर रहगुजर पे तुमको तलाशा है बार-बार
आए हैं उसी मोड़ पे, है अपना नहीं कोई
इस शहर ने दीवाने को ठुकराया है बार-बार
माना कि तेरे हुस्न के काबिल नहीं हूं मैं
पर इश्क तेरे दर पे मुझे लाया बार-बार
रोता हुआ चिराग बुझता नहीं कभी
तेरे इश्क में दीवाना मरता नहीं कभी
इस मयकशी से दर्द बढ़ता नहीं अगर
साकी तेरे मैखाने में आता नहीं कभी
तेरे हुस्न की इबादत में गुजरी है जिंदगी
इक तेरे सिवा और सोचा नहीं कभी
शब ने मुझे सौगात दिया है गजल की
मैं चांद की खातिर सोया नहीं कभी

साईं न जइयो छोड़ के मुझको
मैं जी लूंगी देख के किसको
बच-बच चलियो प्रीत में प्रीतम
ठेस न लग जाए नाजुक दिल को
दर्द से भीगी है मेरी अंखियां
तेरे दरस का रोग है इसको
तू भूलेगा तो मर जाऊंगी
भूल न जाना इस जोगन को
मेरी जिंदगी अब तेरी गली में
तेरी बंदगी अब तेरी गली में
तेरे शहर में भटका बहुत हूं
ये आवारगी अब तेरी गली में
दिल से नजर तक तू छा गई
खोजूं मैं खुद को तेरी गली में
तू मेरे ख्वाबों की कमसिन परी
देखता हूं तुझे मैं तेरी गली में
गिरके ना ये फिर संभल जाए
उल्फत में जान निकल जाए
रूह का दीपक तो जला
ये जिस्म चाहे पिघल जाए
मर्जी हो तेरी तो आ जाओ
मेरा आशियां ये बदल जाए
कश्ती समंदर में कैसे रूके
किनारे से जो फिसल जाए
कौन होता है दुश्मन से बुरा
मैंने सोचा तो था चेहरा तेरा
तेरी तस्वीर बनी थी उसमें
जब जमीं पे आईना था गिरा
सारी तकलीफ जमा की जाए
दिल बड़ा खाली लगता है मेरा
काट न ऐसे मुकद्दर मुझको
आशिक पर तू रहम कर जरा
दिल के अंधेरे में रौशन तन्हाई
शब में है जैसे चांद की रानाई
आग जले और पानी बहे भी
एक है मुहब्बत, एक है जुदाई
अपनी दुनिया वीरान घर है
जिसमें है तेरी शम्मा जलाई
बंदा मुसाफिर, है खुदा अंजानी
दर्द ने कैसी ये लगन लगाई
इश्क में दिल को ठेस लगाना
तुम बेवफा का रस्म निभाना
बंदा ये कमजोर बहुत है
मौत के दर तक छोड़के आना
तेरी गली में कांटे हैं कितने
लेकिन गुलाबों का नहीं ठिकाना
क्या-क्या सितम भूल चुका हूं
ऐ दिल कभी न याद दिलाना

तुझे देखे बिना कभी जी न सके
तुझे सोचे बिना कभी लिख न सके
मैं तो तेरे लिए चुनके लाया गुलाब
सामने आई तुम, तुझे दे न सके
मेरी नजरों में बस एक तमन्ना रही
अपना दर्दे-जिगर हम दिखा न सके
जांनिसारों में तुम हमें न रखो
आज तक अपनी जां हम पा न सके
क्या हुआ होश में न आया तो
तेरी नजरों में जब समाया तो
नहीं आ सकता मैं तेरे घर में
तूने छत पे मुझे बुलाया तो
लो उठा दर्द भी मेरे सीने में
अभी सीने से तुझे लगाया तो
मैं भटकता जा रहा था कहीं
तूने मंजिल मुझे दिखाया तो
आपने अपना नामो-निशां छोड़ा होता
तो मेरे खत का लिफाफा नहीं कोरा होता
ये हकीकत है कि आप सा कोई ना मिला
आप मिलती तो मैं खुद से ना जुदा होता
मुझे पता है मेरे रूह में बस आप ही हैं
काश! आपके रूह में मेरा भी पता होता
बह रही है जमीं पे चांदनी की नदी
तैरते साये का कोई तो किनारा होता
गम से याराना नहीं, गम से आशनाई है
दर्द है सीने में और जिस्म में तन्हाई है
एक सुरीली सी हवा तेरे दर पे ले आई
क्या खबर थी कि ये हिज्र की शहनाई है
अब उदासी ही दिखेगी मेरे चेहरे में
अपनी ये तस्वीर मैंने तुमसे ही बनवाई है
आंख भर लेते हैं जब याद तेरी आती है
तेरे खातिर ही मैंने बांध ये खुलवाई है
चांद सी आंखों से गिरते हैं अश्क से तारे
है घनेरी जुल्फ तले नम रात के नजारे
दर्द आएगा दबे पांव सुबह की तरह
फिर तो सूरज में जलेंगे मेरे अरमां सारे
तुम्हें पाया तो नीरस हो गई ये दुनिया
और दुश्मन सी हो गई घर की दीवारें
तू न आई तो अधूरी है जिंदगी की गजल
जाने कब आएगी तू लेकर हुस्न की बहारें

आह और दर्द बस तेरा तलबगार हुआ
आंख पत्थर हुई, अश्क आबशार हुआ
अमावस में बस जुदाई के सितारे हैं
चांद के बिन फलक भी दागदार हुआ
मेरी पलकों का झपकना बड़ा मुश्किल है
ऐसा तबसे है जबसे तेरा दीदार हुआ
सो रहे हैं इन मकानों के बाशिन्दे सभी
मैं जगा रहके बस्ती का गुनहगार हुआ
कोई इल्जाम न लेगी वो अपने सर पे
सांस टूटी है मुसाफिर की जिसके दर पे
जो मरासिम पे मरने की वफा रखते थे
जल गए वो ही शम्मा में आहें भर के
महफिलों में जो दिखाती है अपने जलवे
एक तन्हा को ढूंढती है हुस्न के दम पे
उंगलियां आज भी बोझिल हैं गुनाहों से
तूने थामा था किसी दिन इसे आगे बढ़ के
पत्थर की तरह दिल को तराशा है बार-बार
एक ताजमहल हमने बनाया है बार-बार
हम तो वफा की राह पे तन्हा ही रह गए
पर रहगुजर पे तुमको तलाशा है बार-बार
आए हैं उसी मोड़ पे, है अपना नहीं कोई
इस शहर ने दीवाने को ठुकराया है बार-बार
माना कि तेरे हुस्न के काबिल नहीं हूं मैं
पर इश्क तेरे दर पे मुझे लाया बार-बार
रोता हुआ चिराग बुझता नहीं कभी
तेरे इश्क में दीवाना मरता नहीं कभी
इस मयकशी से दर्द बढ़ता नहीं अगर
साकी तेरे मैखाने में आता नहीं कभी
तेरे हुस्न की इबादत में गुजरी है जिंदगी
इक तेरे सिवा और सोचा नहीं कभी
शब ने मुझे सौगात दिया है गजल की
मैं चांद की खातिर सोया नहीं कभी
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